कुकड़ा किरार में रेत तस्करों की बल्ले-बल्ले
अक्षर भास्कर डिजिटल, छिंदवाड़ा। रेत के अवैध उत्खनन की जैसे जिम्मेदारों ने इन दिनों खुली छूट दे दी है। कई बंद खदानों से रेत की तस्करी खुलेआम जारी है। जिन कांधों पर अवैध कारोबार को रोकने की जवाबदारी है उन कांधों पर ‘दक्षिणा’ रूपी वजन रख दिए जाने से वे भी रेत तस्करों के सामने झुक गए हैं।
दूसरी ओर रेत तस्करों के बुलंद हौसले इस बात का प्रमाण दे रहे हैं कि उनका ‘सेटिंग का खेल’ पूरी तरह सफलता से चल रहा है। मामला कुकड़ा किरार में खुलेआम चल रहे रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन से जुड़ा है।
मोहखेड़ विकासखंड के ग्राम कुकड़ा किरार में इन दिनों रेत खदान से अवैध रेत उत्खनन और परिवहन के लिए रेत तस्करों के बीच होड़ मची हुई है।
इस बंद हो चुकी खदान से अवैध रूप से रोजाना लगभग 40 ट्रेक्टर ट्राली रेत निकालने का काम किया जा रहा है। इस हिसाब से औसतन रोजाना सरकार को हजारों रुपए की चपत लगाई जा रही है।
प्रशासन की नाक के नीचे ये खेल दिन रात जारी है लेकिन जिम्मेदारों की मौन स्वीकृति के ‘पीले सोने’ के लुटेरों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाती। इन रेत तस्करों की बेखौफ कार्यप्रणाली को देखकर साफ तौर पर समझा जा सकता है कि इनकी ‘सेटिंग’ तगड़ी है।
पुलिस और खनिज विभाग ‘सेट’
सूत्रों के मुताबिक रेत तस्करों से क्षेत्र का पुलिस महकमा और खनिज विभाग के जिम्मेदार ‘सेट’ हैं। इसी के चलते यहां दोनों ही कार्रवाई नहीं करते। रेत का अवैध परिवहन करते दिन रात भागते ट्रेक्टर-ट्राली इस बात की स्वत: गवाही दे रहे हैं कि सरकार को ‘चूना’ लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
गणेश करता है ‘सेटिंग’
कुकड़ा किरार से अवैध रूप से रेत निकलवाने का काम गणेश नामक व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है। इसी के द्वारा पूरी ‘सेटिंग’ की जाती है। यदि आपके पास ट्रेक्टर है तो आप गणेश के पास चले जाइये, वह कुछ राशि आपसे प्रतिमाह लेगा और आपको रेत की लूट का अघोषित लाइसेंस दिलवा देगा।
गणेश जो राशि लेता है उसमें से कुछ हिस्सा अपने पास रखता है तो कुछ बतौर दक्षिणा अन्य जिम्मेदारों तक पहुंचा देता है।
खास बात : पुल का बेस भी सुरक्षित नहीं
कुकड़ा किरार खदान के पास नदी में बने पुल के पिल्लर के पास से भी जमकर रेत निकाली गई है। पुल के पिल्लर के आसपास बने गड्ढे इस बात की भी गवाही दे रहे हैं कि रेत तस्करों ने उन्हें भी नहीं बख्शा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि पुल के पिल्लर के पास से यूं ही रेत निकाली जाती रही तो पुल के धराशायी होने का अंदेशा है। बहरहाल इतिहास गवाह है कि जिम्मेदारों की नींद तभी टूटी है जब कोई बड़ा हादसा हुआ है।