राजेश की वजह से पंचायत का नाम हो रहा खराब
Frolic : छिंदवाड़ा। कहते हैं कि शराब सेहत के लिए हानिकारक होती है लेकिन रोहना के मामले में
शराब ‘राजनीतिक सेहत’ भी बिगाड़ती नजर आ रही है। ये तो सभी जानते हैं कि एक समय में रोहना
जिले की राजनीति का केंद्र बिंदु हुआ करता था। उस दौर में ‘दरबार’ ने कभी शराब विक्रय जैसे मामलों में
खास रूचि नहीं दिखाई। यदि ऐसा कोई विवाद रोहना तक पहुंचा भी तो ‘दरबार’ के सधे हुए अंतिम फैसले
पर किसी ने कभी आपत्ति नहीं जताई। इस अंतिम फैसले के बाद विवाद दोबारा नहीं पनपता था।
अब तो मामले रबर की तरह खींचे जा रहे हैं। शराब संबंधी विवादों का पटाक्षेप निकट भविष्य में तो नजर नहीं आ रहा।
शराब विवाद की वजह से पंचायत का नाम भी खराब हो रहा है।
कभी राजनीतिक रसूख के लिए पहचानी जाने वाली रोहना पंचायत अब शराब ठेका विवाद को लेकर सुर्खियां बटोर रही है।
सूत्र बताते हैं कि इसके पीछे राजेश का बड़ा हाथ है।
रोहना स्कूल से जिस 66 मीटर की परिधि में प्रशासन भी शासकीय शराब दुकान नहीं खुलवा पाया वहां
राजेश गैर शासकीय तरीके से…धड़ल्ले से…खुलेआम शराब बिकवा रहा है।
यहां यह कहना अतिश्याक्ति नहीं होगी कि राजेश ने खुद को प्रशासन से अधिक ताकतवर दिखाने में
कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और प्रशासनिक छवि पर बट्टा लगा दिया।
लोग हंसते हुए प्रशासनिक दक्षता का माखौल उड़ा रहे हैं।
दूसरी ओर प्रशासन का आबकारी विभाग है जो सिर्फ टेबल के ‘ऊपर’ और ‘नीचे’ के वर्क में व्यस्त रहता है।
10-50 लीटर महुआ शराब जब्त और 100-200 किलो लाहन नष्ट कर फोटो के साथ प्रेस नोट जारी करना
इस विभाग ने अपना कर्तव्य और धर्म दोनों ही मान लिया है।
वायरल वीडियो-फोटो आबकारी के मातहतों को नजर ही नहीं आते।
बहरहाल, राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यदि ये प्रकरण ज्यादा खींचा गया तो
इससे ‘रथ’ के दोनों ‘पहियों’ को नुकसान होना स्वाभाविक नजर आ रहा है।
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