पांढुर्णा का ‘परंपरागत’ गोटमार मेला आयोजित, 3 गंभीर नागपुर रेफर
Pandhurna News : पांढुर्णा। पांढुर्णा में परंपरागत गोटमार मेले में इस बार 400 से ज्यादा लोग घायल हुए।
मेले के दौरान लगातार 7 घंटों तक पांढुर्णा और सांवरगांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते रहे।
3 लोगों के हाथ-पैर की हड्डी टूट गई।
तीन गंभीर घायलों को नागपुर रेफर किया गया है।
जाम नदी की पुलिया पर पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों के बीच मंगलवार सुबह से पत्थर फेंकने का सिलसिला शुरू हुआ।
दोनों ओर से एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए गए।
शाम पौने सात बजे दोनों पक्षों में आपसी समझौता हो गया।
इसके बाद सावरगांव पक्ष के लोगों ने पलाश रूपी झंडा सम्मान के साथ पांढुर्णा पक्ष के लोगों को सौंप दिया।
25 हजार से अधिक ने देखा गोटमार
एक अनुमान के मुताबिक गोटमार का खेल देखने 25 हजार से अधिक लोग पांढुर्णा पहुंचे।
लोगों ने घरों की छत पर चढ़कर गोटमार का खेल देखा।
कांग्रेस विधायक नीलेश उईके भी यहां पहुंचे।
सुरक्षा व्यवस्थाएं बनाने पांढुर्णा में 6 जिलों की फोर्स तैनात की गई थी।
प्रशासनिक अमले के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीमें भी तैनात रही।
घायलों को सिविल अस्पताल ले जाया गया।
शाम को कलेक्टर और एसपी ने अस्पताल पहुंचकर घायलों से बात की।
प्रेमी जोड़े की याद में होता है गोटमार
बुजुर्गों के अनुसार सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का युवक एक दूसरे से प्रेम करते थे।
दोनों शादी करना चाहते थे।
लेकिन दोनों के गांव के लोग इस प्रेम कहानी से आक्रोशित थे।
पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्रपक्ष अमावस्या की अलसुबह युवक-युवती भाग गए।
लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए।
दोनों नदी पार करने की कोशिश करते रहे।
यहां पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जमा हो गए और प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई।
तभी से प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है।
कावले परिवार पीढिय़ों से करता है झंडा स्थापित
गोटमार मेले में पलाश रूपी झंडे का काफी महत्व है।
इसे जाम नदी के बीचों बीच स्थापित किया जाता है।
इस झंडे को जंगल से लाने की परंपरा 4 पीढिय़ों से सावरगांव के सुरेश कावले का परिवार निभा रहा है।
एक साल पहले जंगल में पलाश रूपी झंडे को चिन्हित किया जाता है।
पोला त्योहार के एक दिन पहले इसे सुरेश कावले के घर लाया जाता है।
गोटमार के दिन अलसुबह उस झंडे को जाम नदी में स्थापित किया जाता है।
चंडी माता की होती है पूजा
गोटमार मेले की शुरुआत चंडी माता के नाम से होती है।
सबसे पहले गोटमार खिलाड़ी चंडी माता मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं।
इसके बाद जाम नदी के बीच पेड़ को लगाया जाता है।
फिर पुलिया के दोनों तरफ से एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते हैं।
सांबारे परिवार में हुईं 3 मौतें
पांढुर्णा का सांबारे परिवार गोटमार में अपने 3 सदस्यों को खो चुका है।
22 अगस्त 1955 में सबसे पहले महादेव सांबारे की मौत हुई थी।
24 अगस्त 1987 में कोठिराम सांबारे और 4 सितंबर 2005 में जनार्दन सांबारे की मौत गोटमार के दौरान हुई थी।
अब तक 13 ने गंवाई जान
गोटमार मेले में अब तक मरने वालों संख्या 13 है।
यह संख्या वर्ष 1995 से 2023 तक की है।
इसका रिकॉर्ड भी मौजूद है।
गोलियां भी चल चुकीं, दो की मौत
इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन ने काफी सख्त कदम उठाकर पुलिस ने गोलियां भी बरसाई थीं।
यह गोलीकांड 1978 और 1987 में हुआ था, जिसमें 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटवा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी।
इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात बने थे।
पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी हुआ था।
प्लास्टिक की गेंदों से भी नहीं खेले लोग
प्रशासन ने मेले का स्वरूप बदलने को लेकर काफी प्रयास किए। 2001 में प्रशासन ने पत्थरों की जगह प्लास्टिक बॉल जाम नदी पर बिछाई थी।
ताकि पत्थर मारने की प्रथा बंद हो सके।
लेकिन गोटमार खेलने वाले खिलाडिय़ों ने प्लास्टिक और रबर के बॉल को नदी में फेंककर पत्थर मारकर गोटमार शुरू कर दिया।
भगवान को भी कर दिया जाता है ‘कैद’
गोटमार मेले के 3 दिन तक जाम नदी के किनारे स्थित राधा-कृष्ण मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
दरअसल इस मंदिर पर पत्थर गिरने से मंदिर समिति के लोग मंदिर को टाटियों से ढक देते हैं ताकि कोई नुकसान न हो सके।
यही हाल जाम नदी के आसपास निवास करने वाले लोगों का है।
उनके मकानों को भी ढंका जाता है।
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