Trouble : IMA ने बढ़ाई सरकार की मुसीबत ; अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी

पदाधिकारी बोले- सरकारी अस्पताल के साथ निजी क्लीनिक भी बंद रखेेंगे

Trouble : छिंदवाड़ा। परासिया में सिरप पीने से हुई बच्चों की मौत के मामले में प्रदेश सरकार के माथे पर

पहले ही बल पड़े हुए हैं। अब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार की मुसीबत और बढ़ा दी है।

संगठन की मध्यप्रदेश इकाई विरोध पर उतारू हो गई है। आईएमए का साफ कहना है कि परासिया

किडनी फेल मामले में डाक्टर को दोषी नहीं माना जा सकता। मामले में आरोपी डाक्टर प्रवीण सोनी को छोडऩे की

मांग करते हुए आईएमए ने अनिश्चित कालीन हड़ताल की चेतावनी दी है। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि

यदि सरकार 24 घंटे में मांगे नहीं मानती है तो सरकारी अस्पतालों में तो कामकाज ठप्प होगा ही,

निजी क्लीनिकों में भी काम रोक दिया जाएगा।

दवा कंपनी और औषधि नियामक संस्थाएं जिम्मेदार

संगठन ने मृत बच्चों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट की और घटना को बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण माना।

पदाधिकारियों का कहना था कि इस त्रासदी के लिए सीधे तौर पर दवा निर्माता कंपनी और औषधि

नियामक संस्थाएं जिम्मेदार हैं, क्योंकि दवा की गुणवत्ता की जांच और स्वीकृति उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में आती है।

संगठन ने मांग की है कि दवा बनाने वाली कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए।

कंपनी के मालिक को गिरफ्तार किया जाए और प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक दवाओं की

जांच के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को तत्काल निलंबित किया जाए।

डाक्टर का काम सिर्फ दवा लिखना : डॉ. शरणागत

आईएमए अध्यक्ष डॉ. बीएम शरणागत ने कहा कि डॉक्टर का काम केवल बीमारी के अनुरूप दवा लिखना होता है,

दवा तैयार करने का काम कंपनी का और उसकी जांच करने की जिम्मेदारी ड्रग इंस्पेक्टर की होती है।

अगर दवा में खराबी है, तो डॉक्टर को दोषी ठहराना पूरी तरह अनुचित है।

ये दी चेतावनी

चिकित्सकों ने घोषणा की है कि मंगलवार को प्रदेश भर के सभी डॉक्टर अपने हाथों पर काली पट्टी बांधकर

मौन विरोध प्रदर्शन करेंगे। यदि आगामी 24 घंटे में सरकार द्वारा उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो

बुधवार से आईएमए के तत्वावधान में प्रदेश के सभी डॉक्टर सरकारी अस्पतालों से लेकर

निजी क्लीनिकों तक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे। इस हड़ताल के चलते पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं

बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि शासन ने उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया,

तो यह आंदोलन राज्यव्यापी स्तर पर और अधिक व्यापक रूप धारण करेगा।

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