गुरु तेग बहादुर जी के 350वें बलिदान दिवस पर नगर कीर्तन, दर्शन के लिए उमड़ी संगत
Sacrifice Day : छिंदवाड़ा। श्री गुरु तेग बहादुर जी के 350वें बलिदान दिवस के उपलक्ष्य में भव्य नगर कीर्तन
सिख धर्मावलंबियों ने निकाला। इसमें बड़ी संख्या में सिख समुदाय सहित अन्य धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया।
पूरा शहर ‘जो बोले, सो निहाल’ के जयघोष से गूंजता रहा।
स्टेशन रोड स्थित गुरुद्वारा साहिब से शुभारंभ
नगर कीर्तन का शुभारंभ स्टेशन रोड स्थित गुरुद्वारा साहिब से दोपहर लगभग 1.30 बजे किया गया।
यहां से नगर कीर्तन संतोषी माता मंदिर, चारफाटक, बड़ी माता मंदिर, मेन रोड, फव्वारा चौक,
मानसरोवर काम्पलेक्स से होता हुआ पुराना बैल बाजार चौक, ब्रिज के नीचे से श्याम टाकीज,
शनिचरा बाजार पहुंचा। रात्रि लगभग 8 बजे तक नगर कीर्तन पुन: गुरुद्वारा साहिब पहुंचेगा जहां समापन होगा।
जगह-जगह किया स्वागत
नगर कीर्तन का जगह-जगह स्वागत किया गया। इसमें संतोषी माता मंदिर के सामने, बड़ी माता मंदिर के सामने,
मेन रोड पर कई स्थानों पर, फव्वारा चौक पर, मानसरोवर काम्पलेक्स के सामने, श्याम टाकीज क्षेत्र में
अलग-अलग संगत शामिल रहीं। इस दौरान पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे।
दर्शन के लिए लगी कतार, दिया संदेश

पूरे मार्ग पर जगह-जगह संगत नगर कीर्तन के साथ गुरु की पालकी के दर्शन के लिए खड़ी नजर आई।
वहीं, पालकी के दर्शन कर संगत ने लंगर भी ग्रहण किया। कीर्तन के दौरान बताया गया कि
श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत आने वाली पीढिय़ों को शांति दया और सवतंत्रता का संदेश देती रहेगी।
गुरु साहिब की शहादत किसी एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव जाति के लिए प्रेरणास्रोत है।
हिंद की चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी धर्मनिरपेक्षता के सच्चे प्रतीक थे और उन्होंने मानव व
धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए शहादत दी थी।
इन्होने विशेष रूप से भरी हाजिरी
नगर कीर्तन में पटियाला से आए रागी जत्था दर्शन सिंह मस्तुआणा और अमृतसर से आए कथावाचक
गगनदीप सिंह ने विशेष रूप से हाजिरी भरी। दोनों ही 24 एवं 25 नवंबर को सुबह एवं शाम दीवान में
हाजिरी भरकर कीर्तन करेंगे एवं कथा सुनाएंगे।
ये रहे मौजूद
नगर कीर्तन में गुरु सिंग सभा कीं अध्यक्ष परमजीत कौर बेदी, अजिंदर सिंह बेदी, भगवान श्रीचंद पब्लिक स्कूल के
संचालक मनजीत सिंह बंदी, कुलदीप अरोरा, रिंकल बेदी, सतपाल सिंह बग्गा, जसपाल सिंह भमरा, बंटी बेदी,
सोनू टुटेजा के अलावा बड़ी संख्या में अन्य संगत मौजूद रही।

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