Chhindwara News : ‘खतरे’ में कन्हान का भविष्य, लटक सकता है ताला!

भूमिगत श्रमिकों को पेंच क्षेत्र में तबादले की मिली अंतिम मोहलत

Chhindwara News : जुन्नारदेव। बीते कुछ बरसों से कन्हान क्षेत्र के अस्तित्व को लेकर लगातार संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

जहां पर इस क्षेत्र को समाप्त कर दिए जाने की पूरी तैयारी सुनियोजित तरीके से पूर्ण कर ली गई है।

मिली जानकारी अनुसार वेकोलि के 17 अक्टूबर को कन्हान क्षेत्र के मुख्य महाप्रबंधक कार्यालय के क्षेत्रीय कार्मिक प्रबंधक द्वारा जारी पत्र के अनुसार कन्हान क्षेत्र की मोहन, मोआरी एवं तानसी भूमिगत खदानों में शेष बचे श्रमिकों को अपना स्वेच्छिक स्थानांतरण पेंच क्षेत्र में करा लिए जाने के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 21 अक्टूबर 2024 नियत कर दी गई है।

इस पत्र के जारी होते ही यह स्पष्ट हो गया है कि बीते 9 दशक तक कोयला उत्पादन में अव्वल स्थान रखने वाला कन्हान क्षेत्र अब मात्र इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा।

हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार कन्हान क्षेत्र का यह गौरवशाली इतिहास वेकोलि का कुप्रबंधन, श्रमिक नेताओं की लापरवाही एवं स्थानीय नेताओं की स्वार्थ परख व नकारा राजनीति के चलते ही इस स्थिति में आ खड़ा हुआ है।

गौरतलब है कि यहां की भूमिगत खदानों मसलन चिकलमऊ, सुकरी, झरना, घोड़ावाड़ी, दमुआ, तानसी, मोआरी, मोहन कालरी सहित कई खदानों में अभी भी कोयले का अथाह टनों में भंडार मौजूद है,

इसके अतिरिक्त यहां की आधा दर्जन से अधिक नई खदानों के खोले जाने के भी प्रस्ताव है,

लेकिन वेकोलि अधिकारियों की तानाशाही व स्थानीय श्रमिक संगठनों व राजनीतिक दलों के नेताओं का नकारापन कन्हान क्षेत्र की इस असमय मौत के लिए जिम्मेदार है।

दरअसल इन परिस्थितियों की भनक कुछ माह पहले उस समय लग चुकी थी कि जब कन्हान क्षेत्र के मुख्य महाप्रबंधक का अन्यत्र तबादला कर यहां का प्रभार पेंच मुख्य महाप्रबंधक को दिया गया था।

एक लंबी अवधि बीत जाने के बावजूद भी यहां पर मुख्य महाप्रबंधक पद पर नई नियुक्ति के नहीं होने से कन्हान क्षेत्र पर संकट के बादल घिरते हुए दिखने लगे थे।

हालांकि अब यह सब कुछ सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रह गया है, लेकिन अंतिम सत्य एवं तथ्य यही है कि अब कन्हान क्षेत्र ‘गुजरे जमाने की बात’ होने जा रहा है।

श्रमिक नेताओं का फर्जीवाड़ा बना कन्हान क्षेत्र के पतन का कारण

कोयला उत्पादन में कभी शीर्ष स्थान पर रहने वाला कन्हान क्षेत्र के लिए उसके अपने श्रमिक नेता और स्थानीय राजनीतिक दलों के नेता ही दीमक बन चुके थे।

सुकरी, चिखलमऊ सहित कई खदानों में हाजिरी भरकर निजी कार्य व अपने अफसरों की चापलूसी करने वाले श्रमिक नेताओं के कारण कन्हान क्षेत्र में घाटा बढ़ता और उत्पादन घटता गया।

तो वहीं दूसरी ओर दिल्ली और भोपाल के अपने राजनीतिक आकाओं के प्रभाव के गलत इस्तेमाल के चलते इन श्रमिक नेताओं सहित स्थानीय नेताओं की लापरवाही व नकारापन भी इस कन्हान क्षेत्र की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और सांसद की घोषणाएं बेअसर

कन्हान क्षेत्र भाजपा और कांग्रेस के लिए अपनी राजनैतिक रोटी सेकने का जरिया बन गया था जहां बीते वर्षों में चुनाव जीतने के लिए बड़े-बड़े वादे राजनेताओं द्वारा किए गए थे जिसमें देश-प्रदेश सहित जिला और स्थानीय नेताओं ने बड़ी-बड़ी दम भरी थी किंतु अब सब फिसड्डी साबित हो चुके हैं।

विधानसभा चुनाव के दौरान देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा कन्हान क्षेत्र की भूमिगत खदानों को बंद न किए जाने सहित नई खदानों के सृजन की बात कही गई थी।

इसके उपरांत लोकसभा चुनाव में मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा कन्हान क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर के साथ-साथ खदानों को बंद न होने के साथ-साथ नहीं खदानें खोले जाने की खुले मंच से घोषणा की गई थी।

इस दौरान भाजपा सांसद बंटी साहू द्वारा भी कन्हान क्षेत्र के अस्तित्व को बनाए रखने की बात कही गई थी।

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किंतु सभी वादे और दावे खोखले साबित हुए और सारे नेताओं ने अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

कांग्रेस की 45 वर्षों तक जिले की कमान संभालने के साथ विधायक ने भी 10 वर्षों में कन्हान क्षेत्र को बचाने की कोई बड़ी मुहिम नहीं चलाई जिसके चलते आज कन्हान का अस्तित्व खतरे में आ गया है और उजड़ते जुन्नारदेव को बर्बाद करने में राजनेताओं के साथ-साथ स्थानीय श्रमिक संगठनों का भी पूरा हाथ रहा है।

वन एवं पर्यावरण विभाग की आपत्ति भी बना कारण

केंद्र एवं प्रदेश में भाजपानीत सरकारों के होने के बावजूद भी कन्हान क्षेत्र की अधिकांश खदानों में वन एवं पर्यावरण विभाग की अनापत्ति का नहीं मिल पाना इस क्षेत्र के बंद होने का एक और प्रमुख कारण माना जा रहा है।

भाजपा नेताओं के बड़े-बड़े बोल भी इस क्षेत्र को जीवनदान नहीं दे पा रहे हैं।

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उनकी यह बड़ी बड़ी घोषणाएं सिर्फ और सिर्फ लॉलीपाप ही साबित हो पाई है। कन्हान बचाओ मंच के द्वारा एक अच्छी पहल लगातार की गई थी, लेकिन अब वह नाकाफी ही सिद्ध होती नजर आ रही है।

छोटे श्रमिक कामगारों में असुरक्षा

कोयला खदान उद्योग में बंद होने की इस बड़ी घटना के कारण यहां के छोटे श्रमिकों के मन में सुरक्षा की भावना घर कर रही है।

अब उन्हें अपने शेष अंतिम सेवा काल के लिए अन्यत्र जाना होगा।

जहां की परिस्थितियों यहां से ठीक विपरीत रहेगी। ऐसी स्थिति में वह अब स्वयं को असुरक्षित मान रहे हैं।

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