नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आरोपी को 20 वर्ष का सश्रम कारावास सुनाने के बाद न्यायालय की टिप्पणी
Court’s Comment : छिंदवाड़ा। समाज की रक्षा और अपराधी को भयभीत करना न्यायालय का स्वीकार्य उद्देश्य है। सजा समाज के अंत:करण को प्रतिबिंबित करती है।
जघन्य अपराधी को सजा निश्चित करते समय उसके समाज पर प्रभाव का आंकलन करना चाहिए कि समाज के सामूहिक अंत:करण या समाज की आवाज क्या है।
उक्त टिप्पणी न्यायालय ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में दोषी को 20 वर्षों का सश्रम कारावास की सजा सुनाने के बाद की।
न्यायालय ने कहा कि समाज की उपयुक्त अपेक्षा हेतु निवारण दंड जो कि अपराध की क्रूरता के अनुसार ही दिया जाना चाहिए, जब अपराध क्रूर हो, जिससे समाज के सामूहिक अंत:करण को झटका लगे तो किसी भी रुप में सहानुभूति गलत होगी और वह जनता के न्यायिक व्यवस्था के प्रति विश्वास को हिला देगी।
यह है मामला
घर में घुसकर नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले को न्यायालय ने बीस साल के सश्रम कारावास और अर्थदंड की सजा से दंडित किया है।
पीडि़ता के परिजनों को क्षतिपूर्ति राशि देने के निर्देश भी दिए हैं। विशेष लोक अभियोजक दिनेश कुमार उईके ने बताया कि 7 जुलाई 2023 को नाबालिग के माता-पिता बाहर काम पर गए थे।
दोपहर 12 बजे वह स्कूल से घर आई। आरोपी ने अकेले होने का फायदा उठाते हुए घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म किया। पीडि़ता ने बाद में परिजनों को जानकारी देकर मामले की शिकायत उमरानाला चौकी में की।
पुलिस ने मामला दर्ज कर सुनवाई के लिए पॉक्सो एक्ट की विशेष न्यायाधीश के न्यायालय में प्रस्तुत किया था। तमाम साक्ष्यों, गवाहों के बयान सुनने के बाद नौ माह के अंदर विचारण उपरांत दोष सिद्ध पाए जाने पर न्यायालय ने आरोपी सागर को धारा 376, पॉक्सो एक्ट के तहत सजा सुनाई।
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