एमआरपी से ज्यादा दाम पर शराब बेच रहा सिंडिकेट
Wilfulness : छिंदवाड़ा। कलेक्टर भी आ जाएं तो इसी रेट पर दूंगा…लेना है तो लो नहीं तो निकल लो..!
ये उस बहस के दौरान बोला गया डायलॉग है जो एक शराब के खरीददार और सेल्समैन के बीच चल रही थी।
यह वाकया है शहरी सीमा में स्थित एक शराब दुकान का।
जब शराब का एक खरीददार दुकान पहुंचा तो उसे एमआरपी से ज्यादा रेट पर शराब दी गई।
इस पर जागरुक खरीददार ने आपत्ति जताते हुए सेल्समैन को एमआरपी से ज्यादा दाम
पर शराब बेचने संबंधी नियम गिना डाले। दूसरी ओर सेल्समैन ने भी अपने मालिकों (सिंडिकेट) का रुतबा
दिखाते हुए डायलॉग मार दिया कि ‘कलेक्टर भी जाएं तो उनको भी इसी रेट में शराब दूंगा, लेना है तो लो नहीं तो निकल लो।’

दरअसल जबसे नया ठेका हुआ है और सिंडिकेट बना है तबसे एमआरपी से अधिक दाम पर
शराब बेचे जाने की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं।
हालात ये हैं कि ‘चाय से ज्यादा केतली गर्म है’ अर्थात् सिंडिकेट के सेल्समैन बहस और बद्तमीजी पर उतारू हो जाते हैं।
35 प्रतिशत तक ‘ठगी’ का खेल !
सूत्र बताते हैं कि सिंडिकेट के हाथों में शराब दुकानों की कमान आते ही हालात ये हो गए हैं कि
एमआरपी से 25 से 35 प्रतिशत तक अधिक दामों पर शराब बेची जा रही है।
इसे यदि शराब उपभोक्ताओं से सीधे तौर पर ‘ठगी’ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
जानकारों के अनुमान के मुताबिक शहर में तकरीबन 20 लाख रुपए की ‘ठगी’ रोजाना
शराब उपभोक्ताओं के साथ सिंडिकेट कर रहा है।
यह वह रकम है जो सरकार के खजाने में नहीं बल्कि सिंडिकेट की जेब में जा रही है।
इस संबंध में कुछ शराब ठेकेदारों के मोबाइल अक्षर भास्कर ने घनघनाए लेकिन कोई भी इस विषय पर
मुंह खोलने तैयार नहीं हुआ।
हमेशा की तरह फोन नहीं उठाया…

इस संबंध में जिला आबकारी अधिकारी अजीत इक्का से संपर्क के प्रयास किए गए लेकिन उन्होने
हमेशा की तरह फोन नहीं उठाया। हालांकि बताया जाता है कि सिंडिकेट से यदि किसी का फोन जाता है
तो साहब फोन उठाने के साथ कुर्सी से भी ‘उठ’ जाते हैं।
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