सकल दिगम्बर जैन समाज समिति द्वारा श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान कार्यक्रम का आयोजन
Religious : केवलारी। सकल दिगम्बर जैन समाज समिति द्वारा श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान कार्यक्रम चल रहा है।
इसके तहत 2 दिसम्बर दिन मंगलवार को श्री जी की शोभायात्रा, घट यात्रा, ध्वजा रोहण, मंडप उद्घाटन,
मंडप शुद्धि सकलीकरण, मंडप प्रतिष्ठा अभिषेक, शांतिधारा, पूजन एवं विधान प्रारंभ हुआ।
प्रतिदिन के कार्यक्रम प्रात: 8 बजे मुनि श्री के प्रवचन, शाम 6.30 बजे महाआरती, रात्रि 8 बजे
सांस्कृतिक प्रस्तुति हो रही है। 3 दिसम्बर से 8 दिसम्बर तक प्रात: 06.30 बजे श्री जी का अभिषेक,
पूजन एवं विधान जारी है। 9 दिसम्बर दिन मंगलवार प्रात: 06.30 बजे से शोभायात्रा अभिषेक,
पूजन, हवन एवं मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक, दोपहर 1 बजे समापन
शोभायात्रा निकाली जाएगी। केवलारी में 16 नवंबर को मुनि श्री 108 नीरज सागर जी महाराज
एवं मुनि श्री 108 निर्मद सागर जी महाराज का मंगल प्रवेश हुआ था, जिसमें मीडियाकर्मियों को
आशीर्वाद वचन स्वरूप मुनि श्री 108 नीरज सागर जी महाराज कहा कि सेवा, परोपकार और
करुणा मानवीय मूल्यों के अभिन्न अंग हैं, जहां सेवा दूसरों की नि:स्वार्थ मदद है, परोपकार का अर्थ
दूसरों की भलाई के लिए समय, धन या प्रतिभा देना है, और करुणा दूसरों के दुख को महसूस कर
उन्हें दूर करने की भावना है, जो इन सभी कार्यों को प्रेरित करती है। ये तीनों मिलकर एक सशक्त,
दयालु समाज का निर्माण करते हैं और व्यक्ति को आत्म-संतुष्टि व आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।
परमात्मा में एक बार मन लग गया फिर उसके लिए संसार का सुख कोई मायने नहीं रखता।
निष्काम कर्म करते-करते भगवान में विश्रांति होती है। प्रत्येक मनुष्य के अन्दर भक्ति, ज्ञान और
वैराग्य समाहित होते है। लेकिन जब तक आप अध्यात्म में प्रवेश नहीं करते हैं, तब तक भक्ति
शोक में डूबी रहती है और ज्ञान, वैराग्य सुप्त अवस्था में पड़े रहते हैं। जैसे ही आप सत्संग करते हैं या
प्रभु की कथा श्रवण करते हैं, भक्ति आनन्दमय हो जाती है। ज्ञान और वैराग्य जाग्रत अवस्था में
आ जाते हैं जो कि साधक को सत्य चित्त और आनन्दमय बनाने की प्रवृत्ति में अग्रसर होते हैं।
जो साधक मनुष्य जीवन के मूल्य को जानते हैं, वे राग-द्वेष में न पड़कर भगवान की प्राप्ति की ओर
अग्रसर रहते हैं। जो भी कर्म हो उससे ज्ञान-भक्ति-वैराग्य बढ़े बस इसी ओर प्रयत्नशील रहते हैं।
यदि ज्ञान-भक्ति-वैराग्य बढ़ गया तो फिर जगत में होते हुए भी मन जगत में नही जाता।

शरीर विनाशी और आत्मा अविनाशी है। यही शाश्वत सत्य है। शरीर का चिन्तन दु:ख की ओर
ले जाता है और आत्म-चिन्तन से परमानन्द की प्राप्ति होती है। जब तक जन्म मृत्यु के चक्कर मे
हो तो उसका कारण है कर्म बन्धन,चर्म चक्षु से आप संसार से परिचित होंगे लेकिन जब आपके पास
दिव्य चक्षु होंगी तो आप परमात्मा के दर्शन अनुपम रूप में कर पाएंगे। महात्मा का भाव लोगों को
संसार के मोह से दूर कर परमात्मा की प्राप्ति लिये होना चाहिये। जिनका स्वरूप तथा चरित्र मंगलमय है
उनका आचरण भी मंगलमय होता है।
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